युवा पीढ़ी
हूँ मैं एक अधमरे समाज की;
युवा पीढ़ी कहते है मुझे|
जागृत समाज की में निष्क्रीय प्रतिनिधि;
नैतिकता और सत्यता मूल्यों को पहचानते है हम;
परन्तु चुप रहते है झूटी व्यवस्थाओं के आगे|
समय है मुखौटों को उतारने का;
विनम्रता से नम्रता का हाथ थामने का..
तभी अन्याय के लिए आवाज़ बुलंद कर पाएंगे..